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हालात और जज्बात ऐसे बदल जाएंगे कि किसी को पता नहीं चलेगा, मजेदार है विक्रांत मैसी की फिल्म

विक्रांत मैसी की फिल्म ‘ब्लैकआउट’ ओटीटी प्लेटफॉर्म जियो सिनेमा पर स्ट्रीम हो रही है. जब पता चला था कि ‘कान्स फिल्म फेस्टिवल’ वाली छाया कदम भी इस फिल्म में हैं, उसी समय मैंने तय कर लिया था कि ये फिल्म ‘फर्स्ट डे फर्स्ट नाइट’ देखनी है. तो क्या था 12 बज गए और हमने फिल्म देखना आरंभ किया. लेकिन छाया इस फिल्म में एक स्वीट डिश की तरह हैं. मतलब बहुत कम. झूठ नहीं बोलूंगी, थोड़ी निराशा तो हुई, लेकिन फिल्म देखने का कोई पछतावा नहीं है. फिल्म अलग जरूर है, लेकिन अच्छी है, इस वीकेंड घर बैठकर देखी जा सकती है. अब इस पर विस्तार से बात करते हैं.

लेनी डिसूजा (विक्रांत मैसी) एक क्राइम रिपोर्टर है. धर्म से पति, कर्म से रिपोर्टर और शर्म तो उसमें बिलकुल भी नहीं है. अपनी पत्नी (रुहानी शर्मा) से बेहद प्यार करने वाला लेनी अचानक पावर कट होने की वजह से अंडा-पाव लेने घर से निकलता है, और गाड़ी लेकर घर से निकल पड़े लेनी की जिंदगी उस दिन एक ऐसा मोड़ लेती है, जिसे देख वो खुद दंग रह जाता है. 24 घंटे के लेनी के इस सफर में बैंक रॉबरी, डॉन से मुलाकात, गुंडों से फाइट से लेकर पुलिस से बच निकलना, स्टिंग ऑपरेशन, और बीवी के धोखे तक सब कुछ है, अब किस तरह से लेनी इन सब से बचता है? ये जानने के लिए आपको जियो सिनेमा पर ‘ब्लैकआउट’ देखनी पड़ेगी.

विक्रांत मेसी की ये फिल्म नसरुद्दीन शाह की ‘जाने भी दो यारो’ की याद दिलाती है. उस फिल्म में उन दो फोटो जर्नलिस्ट की कहानी बताई गई थी जिनके कैमरा में एक मर्डर कैद हो जाता है. जिस तरह से ‘जाने भी दो यारो’ में अपने दो शानदार एक्टर के जरिए सुधीर मिश्रा और कुंदन शाह ने सिस्टम पर निशाना साधा था, ठीक उसी तरह से अपने सटायर के साथ निर्देशक देवांग भावसार ने भी ‘ब्लैकआउट’ के जरिए आज की लाइफस्टाइल में नजर आने वाले दोगलेपन की बीच चौराहे पर बेइज्जती की है. कॉमेडी और सटायर के साथ ही सही लेकिन इस फिल्म में करप्शन, चीटिंग, दोस्ती में धोखा, सोशल मीडिया पर सेलिब्रिटी बनने का जुनून जैसे कई ऐसे मुद्दे पर बात की गई है, जिस पर बात करनी जरूरी है.

कहानी और निर्देशन
ये पूरी कहानी 2 घंटे की है. और पूरी कहानी में वो बिलकुल भी नहीं होता, जिसकी आप उम्मीद करते हैं. उदहारण के तौर पर बात की जाए तो जब हम लेनी को एक आदर्श दोस्त समझने लगते हैं तब वो अपने मरे हुए दोस्त को छोड़कर उसका सोना लेकर भाग जाता है. जब हम सुनील ग्रोवर के किरदार को शराबी मान लेते हैं तब वो अचानक कहानी में नया ट्विस्ट लेकर आते हैं. शुरुआत से लेकर एंड तक ये फिल्म एंगेजिंग है. आखिरी 10 सेकंड में भी इस फिल्म में राइटर नया ट्विस्ट लेकर आते हैं. और राइटर के इस बढ़िया स्क्रीनप्ले को देवांग भावसार पूरी तरह से न्याय देते हैं. जाहिर सी बात है इसका श्रेय फिल्म की स्टार कास्ट को भी देना होगा.

एक्टिंग
’12th फेल’ में मनोज कुमार शर्मा का किरदार निभाने वाले विक्रांत ने ‘ब्लैकआउट’ से साबित कर दिया है कि वो एक गिरगिट की तरह रंग बदलकर किरदार को अपना लेते हैं. मनोज कुमार शर्मा से लेनी पूरी तरह से अलग है. एक तरफ वो बड़े बड़े स्टिंग ऑपरेशन करता है, तो दूसरी तरफ हर आम आदमी की तरह उसके भी कुछ ऐसे सपने हैं, जो कभी पूरे नहीं हो सकते. अपनी बॉडी लैंग्वेज से विक्रांत ने एक आम आदमी के दिल और दिमाग में चल रहे अच्छाई और बुराई के द्वन्द्व को सटीक तरीके से दिखाया है. जिस तरह से ‘जाने भी दो यारों’ में कई पड़ाव दिखाए गए थे, ठीक उसी तरह इस कहानी में भी अलग अलग मोड़ आए हैं. और हर मोड़ पर हम नए कलाकारों से मिलते हैं. इस कहानी में सुनील ग्रोवर असगर का किरदार निभा रहे हैं.

सुनील ग्रोवर ‘कपिल शर्मा शो’ की तरह यहां भी एक ही व्यक्ति के दो अलग-अलग रूप पेश करते हैं. उनके बारे में ज्यादा बात करें तो आपको स्पॉइलर पता चल जाएंगे. हमेशा की तरह सुनील की टाइमिंग शानदार है. एक मोड़ पर हम मौनी रॉय से भी टकराते हैं, लंबे समय बाद केली दोरजी से भी मुलाकात होती है. सभी किरदार अच्छे हैं, लेकिन विक्रांत और सुनील ग्रोवर के साथ स्क्रीन शेयर करने वाले करण सोनवणे (ठीक) और सौरभ घाडगे (ठाक) के बारे में भी यहां बात करनी जरूरी है. फोकस इंडियन नाम से इंस्टाग्राम पर मशहूर करण और सौरभ दोनों असल में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं. अपनी डेब्यू फिल्म में विक्रांत मैसी जैसे कलाकार के साथ स्क्रीन शेयर करना किसी भी न्यू कमर के लिए आसान नहीं है. लेकिन करण और सौरभ ने अपना काम ईमानदारी से किया है.

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