Asli Awaz

क्या है अमरगुफा की कहानी, जिसमें तोड़फोड़ से उग्र हो गया सतनामी समाज?

छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार में सोमवार शाम सतनामी समाज भड़क उठा. समाज के लोगों ने कलेक्टर ऑफिस को आग के हवाले कर दिया. कलेक्टर सहित अन्य अधिकारियों की गाड़ियां तक फूंक डालीं. कर्मचारी किसी तरह अपनी जान बचाकर वहां से भागे. इस दौरान कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा, जिसके बाद स्थिति नियंत्रित में हुई, लेकिन इन सबके बीच सभी के मन में एक ही सवाल है कि आखिर सतनामी समाज क्या है, इसकी पवित्र ‘अमरगुफा’ की कहानी क्या है, जिस पर हुए हमले के बाद इतना बड़ा बवाल हो गया, जो पुलिस-प्रशासन संभालने में नाकाम रहा?

सतनामी समाज की कहानी शुरू होती है बाबा गुरु घासीदास से. बाबा घसीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 को बलौदा बाजार जिले के गिरौदपुरी नामक गांव में मंहगू दास के घर हुआ था. इनकी माता का नाम अमरौतिन था. घासीदास ने बचपन से कई चमत्कार दिखाए, जिसका लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा. ऐसा भी कहा जाता है कि गुरु घसीदास को ज्ञान की प्राप्ति रायगढ़ जिले के सारंगढ़ तहसील के एक गांव के बाहर पेड़ के नीचे तपस्या करते हुए हुई थी. आज यहां बाबा घासीदास की स्मृति में पुष्प वाटिका बनी हुई है.

इसके बाद घासीदास ने सत्य की तलाश के लिए अपने ही गांव गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड़ गुफाओं पर समाधि लगाई. गिरौदपुरी में ही आश्रम बनाया. घासीदास ने सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए लंबी तपस्या भी की. गुरु घासीदास ने किसी भी तरह की कोई शिक्षा प्राप्त नहीं की थी. उन्होंने तप और आत्मबल से महाज्ञानी की उपाधि हासिल की थी. इनके प्रभाव के चलते लाखों लोग इनके अनुयायी हो गए. इस प्रकार छत्तीसगढ़ में ‘सतनाम पंथ’ की स्थापना हुई. इस संप्रदाय के लोग घासीदास को अवतारी पुरुष के रूप में मानते हैं.

गुरु घासीदास ने सात वचन से सतनामी समाज (सतनाम पंथ) की स्थापना की थी, जिसमें सतनाम पर विश्वास, मूर्ति पूजा का निषेध, वर्ण भेद से परे, हिंसा का विरोध, व्यसन से मुक्ति, परस्त्री गमन की वर्जना और दोपहर में खेत न जोतना है. 1850 में गुरु घासीदास की मृत्यु के बाद इनकी शिक्षाओं को उनके बेटे गुरु बालकदास ने आगे बढ़ाया. आज इनके करोड़ों अनुयायी हैं. गिरौदपुरी में ही जहां पर गुरु घासीदास ने तपस्या की, वहीं पर इनके अनुयायियों ने मंदिर बनवाया, जिसे ‘अमरगुफा’ के नाम से जाना जाता है. यहीं पर ‘जैतखाम’ की स्थापना की गई. इनका सबसे प्रसिद्ध संदेश मनखे-मनखे एक समान है, जिसने छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों के लोगों को इससे जोड़ा.

हर वर्ष 18 दिसंबर को गुरु घासीदास की जयंती मनाई जाती है. इस अवसर पर सतनामी समाज के लोग जैतखाम की पूजा कर सफेद झंडा चढ़ाते हैं. साथ ही जैतखाम में ठेठ छत्तीसगढ़िया रोटी-पिठा (मिठाई) भी चढ़ाई जाती है. बाबा की जयंती पर सतनामियों द्वारा एक खास नृत्य किया जाता है, जिसे पंथी नृत्य कहा जाता है. गुरु घासीदास की जन्मस्थली गिरौदपुरी में एशिया के सबसे बड़े ‘जैतखाम’ की स्थापना की गई है.

CAPTCHA