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खादी, गाँधी और भारत की आज़ादी

खादी की लोकप्रियता में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का ऐतिहासिक योगदान है।
1920 में महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन में खादी को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
इसी आंदोलन के चलते भारत में लगभग हर घर में खादी बनाने की शुरुआत हुई थी।
गांधीजी ने 1920 के दशक में गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये खादी के प्रचार-प्रसार पर बहुत जोर
देना शुरू किया, इस प्रकार खादी स्वदेशी आंदोलन का एक सिद्धांत और प्रतीक बन गया।खादी का रिश्ता हमारे इतिहास और परंपरा से है।

आजादी के आंदोलन में खादी एक अहिंसक और रचनात्मक हथियार की तरह थी।
यह आंदोलन खादी और उससे जुड़े मूल्यों के आस-पास ही बुना गया था। खादी को महत्व देकर महात्मा गांधी ने दुनिया को यह संदेश दिया था कि आजादी
का आंदोलन उस व्यक्ति की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आजादी से जुड़ा है, जो गांव में रहता है और जिसकी आजीविका का रिश्ता हाथ से कते और बुने कपड़े से जुड़ा है|उन्होंने खादी को राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का एकमात्र साधन ही नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की दिशा में एक रास्ता भी माना।खादी आंदोलन, जिसमें गांधीजी ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया और ग्रामीण रोजगार के लिए खादी कताई को बढ़ावा दिया, एक प्रतीकात्मक आंदोलन
बन गया।

गांधीजी ने विदेशी दमनकारी नीतियों पर प्रहार करने के साधन के रूप में स्वयं कपड़ा कातने के विचार को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया। उन्होंने स्वयं केवल धोती पहनना शुरू किया और स्वयं सूत कातना शुरू किया।
इस प्रकार चरखा एक क्रांतिकारी प्रतीक और भारत के स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न अंग बन गया।खादी के उत्पादन में हजारों ग्रामीण| कुशल कारीगरों को रोजगार मिला और ग्रामीण गरीबों के लिए आय का एक प्रमुख स्रोत बना ,राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी जी का स्वदेशी आंदोलन देश के लिए काफी कारगर साबित हुआ ।

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