नई दिल्ली : जातिगत जनगणना होनी चाहिए या नहीं, इस पर विवाद जारी है. एक तरफ जहां विपक्ष इस मुद्दे को लेकर आक्रामक है, तो वहीं दूसरी ओर भाजपा ने भी इसका विरोध नहीं किया है. अब इस मुद्दे पर आरएसएस का एक बयान आया है, जिसमें उन्होंने जातिगत जनगणना को सही बताया है, लेकिन यह भी कहा कि कोई भी इसका राजनीतिक इस्तेमाल न करे. आरएसएस की हामी के बाद कांग्रेस पार्टी ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि इस मामले पर आरएसएस राय देने वाला होता कौन है. कांग्रेस नेता ने कहा कि क्या आरएसएस से पूछकर जातिगत जनगणना होगी. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने जातिगत जनगणना के मुद्दे पर आरएसएस की राय पूछी है. उन्होंने कहा कि क्या आरएसएस जातिगत जनगणना पर अपना स्टैंड क्लियर करेगा या फिर उसे गरीब, पिछड़े, आदिवासी और दलितों की भागीदारी की कोई चिंता नहीं है.
यहां आपको बता दें कि केरल के पलकक्ड में आरएसएस का कार्यक्रम चल रहा है. इस कार्यक्रम में आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि आरएसएस को जातिगत जनगणना से कोई दिक्कत नहीं है. आगे उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना के बाद जो भी आंकड़े सामने आएंगे, उनसे फायदा हो सकता है, लेकिन अगर किसी ने इसका पॉलिटिकल दुरुपयोग किया, तो यह समाज के लिए सही नहीं होगा.
कांग्रेस पार्टी ने आरएसएस के इसी विचार पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि आखिर आरएसएस न तो कोई जज है, न कोई अंपायर, फिर उनकी राय का क्या मतलब. आगे जयराम रमेश ने कहा कि अब तो संघ ने जातिगत जनगणना के मुद्दे पर अपनी राय जाहिर कर दी है, तो क्या इस पर पीएम कोई एक्शन लेंगे और ऐसा करके एक बार फिर से कांग्रेस के एक और मुद्दे को हाईजैक कर लेंगे.
क्या है जातिगत जनगणना का मुद्दा- अभी तक किसी भी राजनीतिक पार्टी ने जातिगत जनगणना के मुद्दे के खिलाफ अपनी राय नहीं दी है. यह सबको पता है कि इस विषय पर अलग स्टैंड लेना बड़ा राजनीतिक नुकसान से भरा होगा. कोई भी पार्टी किसी भी जाति या एक समूह को नाखुश नहीं करना चाहती है. एनडीए के घटक दल एलजेपी और जेडीयू खुलकर जातिगत जनगणना की मांग कर रही है. भाजपा ने अपना स्टैंड साफ नहीं किया है. हालांकि, उसने विरोध भी नहीं किया है. राजनीतिक विश्लेषण मानते हैं कि भाजपा हिंदू वोटों के बिखरने की वजह से इस मुद्दे पर कोई भी राय जाहिर नहीं कर रही है. उसकी रणनीति है कि हिंदू अंब्रैला के तहत सभी को एकत्र रखा जाए.
भाजपा को पता है कि किस तरह से 2015 में जिस बिहार विधानसभा चुनाव को उनके पक्ष में माना जा रहा था, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान ने सारा खेल बिगाड़ दिया था. भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कही थी. लालू यादव ने इस बयान को एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना दिया और बिहार में भाजपा की हार हो गई.
इसी तरह से 2019 में भी जब उन्होंने कहा था कि आरक्षण के विरोधी और समर्थक, जब एक दूसरे को समझ लेंगे, तो समस्या नहीं रह जाएगी, उनके इस बयान पर भी विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई थी. विपक्ष के आरोपों पर मोहन भागवत ने कहा था कि आरएसएस आरक्षण का विरोधी नहीं है. इसका मक़सद अलग-अलग जातियों की संख्या के आधार पर उन्हें सरकारी नौकरी में आरक्षण देना और ज़रूरतमंदों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाना बताया जाता है.