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अब महाराष्ट्र में राहुल का मास्टरस्ट्रोक, सत्ता का रास्ता तलाशेंगे

हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार थमने के साथ ही महाराष्ट्र की सियासी तपिश गरमा गई है. बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए राज्य में सत्ता को बचाए रखने की कवायद में है तो कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन अपनी वापसी के लिए बेताब है. हरियाणा में पुरजोर तरीके से चुनावी अभियान चलाने के बाद कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का फोकस अब महाराष्ट्र पर है.

राहुल गांधी आज शुक्रवार को महाराष्ट्र के दो दिवसीय दौरे पर पहुंच रहे हैं, जहां वह छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा का अनावरण करेंगे. इसके बाद शनिवार को संविधान बचाओ सम्मेलन में शामिल होकर वह सामाजिक न्याय के एजेंडे को सेट करने का दांव चलेंगे.

चुनाव के ऐलान से पहले रणनीति पर जोर

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का ऐलान अब किसी भी दिन हो सकता है. यही वजह है कि हरियाणा और जम्मू कश्मीर से निपटने के बाद कांग्रेस ने अब महाराष्ट्र पर फोकस करने की रणनीति बनाई है. एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए राहुल गांधी शुक्रवार से मैदान में उतर रहे हैं. राहुल ने अपने दो दिवसीय दौरे से कांग्रेस के चुनावी अभियान को धार देने के लिए आरक्षण की धरती कोल्हापुर को चुना है. माना जा रहा है कि कांग्रेस अपनी खोई राजनीतिक जमीन को दोबारा से पाने की कवायद में है, जिसके तहत ही पार्टी ने कोल्हापुर से अभियान शुरू करने की योजना बनाई है.

राहुल गांधी शुक्रवार को कोल्हापुर के भगवा चौक पर छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा का अनावरण कर सियासी एजेंडा सेट करने की कोशिश में है. महाराष्ट्र की अस्मिता और सियासत में छत्रपति शिवाजी हमेशा से एक बेहद अहम प्रतीक रहे हैं. पिछले दिनों सिंधुदुर्ग स्थित इलाके में लगी छत्रपति शिवाजी की 35 फुट ऊंची प्रतिमा गिरकर टूटने से महाराष्ट्र की सियासी तपिश बढ़ गई थी. कांग्रेस, शरद पवार की एनसीपी और उद्वव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) ने इस घटना को लेकर शिंदे के अगुवाई वाली सरकार पर जमकर हमला बोला था और बीजेपी को कठघरे में खड़ा किया था.

शिवाजी की मूर्ती के गिरने से जुड़ा मामला इतना बढ़ गया था, जिसके चलते बीजेपी और शिंदे सरकार बैकफुट पर आ गई थी. ऐसे में शिंदे सरकार से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने सिर्फ दुख ही जाहिर नहीं किया बल्कि उन्होंने महाराष्ट्र और देश की जनता से सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी थी. ऐसे में राहुल गांधी महाराष्ट्र चुनाव अभियान का आगाज शिवाजी की मूर्ती के अनावरण के साथ कर रहे हैं, जिसके सियासी मायने को साफ तौर पर समझा जा सकता है. इस तरह कांग्रेस शिवाजी महाराज के बहाने महाराष्ट्र में खिसके अपने सियासी आधार को दोबारा से पाने की कोशिश में है.

सामाजिक न्याय के एजेंडे को करेंगे सेट

राहुल गांधी शुक्रवार को कोल्हापुर में शिवाजी महाराज की मूर्ती का अनावरण करेंगे तो शनिवार को संविधान बचाओ सम्मेलन में शिरकत कर सामाजिक न्याय के एजेंडे को धार देंगे. राहुल गांधी लगातार आरक्षण सीमा को 50 प्रतिशत बढ़ाने की पैरवी कर रहे हैं. ऐसे में राहुल ने सामाजिक न्याय के मुद्दे को धार देने के लिए कोल्हापुर को चुना है, क्योंकि छत्रपति शाहू महाराज ने यहीं से सामाजिक न्याय की आवाज उठाते हुए सबसे पहले आरक्षण का अलख जगाया था. स्थानीय लोग सामाजिक न्याय के प्रणेता के रूप में छत्रपति शाहू महाराज को याद करते हैं, क्योंकि उन्होंने 1902 में निचली जातियों को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया था. मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज कोल्हापुर के मौजूदा सांसद छत्रपति शाहू हैं, जो कांग्रेस से जीते हैं.

2024 के लोकसभा चुनाव से ही राहुल गांधी संविधान की रक्षा और सामाजिक न्याय के एजेंडे को धार देने में जुटे हैं. इसके लिए आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा को बढ़ाने की की बात वो लगातार दोहरा रहे हैं. राहुल संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की सियासी गेम ही पलट दिया था. कांग्रेस ने अपनी जीत के इस मंत्र को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी आजमाने की स्ट्रैटेजी बनाई है. दलित और ओबीसी जातियों को साधने के लिए राहुल कोल्हापुर से महाराष्ट्र में जातिगत जनगणना कराने के मुद्दे को भी उठा सकते हैं.

महाराष्ट्र में जातीय समीकरण का दांव

लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की सियासी जंग फतह करने के बाद से कांग्रेस के हौंसले बुलंद है. राज्य में सबसे ज्यादा सीटें कांग्रेस ही जीतने में कामयाब रही थी. कांग्रेस को विदर्भ और मराठावाड़ा इलाके में ज्यादा सीटें मिली हैं. कांग्रेस 2024 विधानसभा चुनाव में भी इन्हीं क्षेत्रों पर फोकस कर रही है और जातिगत समीकरण साधने की कवायद में है.

महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा मराठा जाति के लोगों की आबादी है. राज्य में करीब 30 फीसदी मराठा समुदाय की आबादी है तो दलित-मुस्लिम की संख्या 11-11 फीसदी के करीब है. ओबीसी की आबादी करीब 40 फीसदी है, जो अलग-अलग जातियों में बंटी हुई है. महाराष्ट्र में ब्राह्मण समुदाय की आबादी 6 से 8 फीसदी के बीच है. विदर्भ में दलित तो मराठावाड़ा में मराठा वोटर निर्णायक भूमिका में है.

मराठा बनाम गैरमराठा का समीकरण

प्रदेश की सियासत में मराठा बनाम गैरमराठा का सियासी समीकरण सेट किया जाता रहा है. गैर-मराठा जातियों में मुख्य रूप से ब्राह्मण, दलित, ओबीसी और मुसलमान जातियां आती हैं. बीजेपी और संयुक्त शिवसेना का गढ़ गैर मराठा जाति के लोगों के बीच रहा है. बीजेपी ओबीसी के जरिए महाराष्ट्र में अपने राजनीतिक आधार को बढ़ाने में जुटी थी, लेकिन 2014 से बाद से मराठा वोटों को भी साधने की दांव चल रही. ऐसे में ओबीसी वोटों में बिखराव हुआ है. कांग्रेस दलित, मराठा और मुस्लिम वोटों के सहारे महाराष्ट्र में अपनी सियासत करती रही है. शरद पवार की राजनीति पूरी तरह मराठा समुदाय के इर्द-गिर्द सिमटी रही है.

2024 के लोकसभा चुनाव में दलित, मराठा और मुस्लिम वोटर एकजुट होकर कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के साथ रहे हैं, लेकिन ओबीसी में बिखराव हुआ. बीजेपी को इसीलिए महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस ने जिस फॉर्मूले पर 2024 के लोकसभा चुनाव में 13 सीटें खुद और 17 सीटें उसके सहयोगी दलों ने जीतकर बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन को तगड़ा झटका दिया था. इसीलिए राहुल गांधी सामाजिक न्याय के एजेंडे को फिर से धार देने के लिए उतर रहे हैं ताकि दलित, मराठा और ओबीसी को साधकर रखा जा सके.

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