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मेष संक्रांति कल, सूर्य उच्च राशि में करेगा प्रवेश, मान्यता- स्नान-दान और सूर्य को अर्घ्य देने से मिलता है पुण्य

13 अप्रैल को सूर्य का राशि परिवर्तन होने वाला है. इस दिन सूर्य मीन से निकलकर मेष राशि में आ जाएगा. इस कारण मेष संक्रांति पर्व मनेगा. पुराणों में लिखा है जिस दिन सूर्य राशि बदलता है उस दिन संक्रांति पर्व मनाना चाहिए. इस पर्व पर तीर्थ-स्नान, दान और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने से पुण्य मिलता है.

शनिवार को सूर्य मेष राशि में आएगा. जो सूर्य की उच्च राशि है. इस राशि परिवर्तन के बाद सूर्य का प्रभाव और ज्यादा बढ़ जाता है. पुराणों के मुताबिक मान्यता है कि उच्च राशि में मौजूद सूर्य को अर्घ्य देने से बीमारियां दूर होने लगती हैं और उम्र भी बढ़ती है.

इस दिन उगते हुए सूर्योदय से पहले उठें. तीर्थ में स्नान करें, ऐसा न कर पाएं तो घर पर ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे डालकर नहाएं. इस पानी में लाल चंदन और चुटकी भर तिल भी डाल लें. नहाने के बाद उगते हुए सूर्य को प्रणाम करें और अर्घ्य दें.

सूर्य पूजा करने के बाद दिनभर व्रत रखने और जरुरतमंद लोगों को दान देने का संकल्प लेना चाहिए. फिर दिन में ऐसे लोगों को खाना खिलाएं, कपड़े, नमक, छाता, जूते-चप्पल और पानी का मटका दान कर सकते हैं.

*तांबे के लोटे से दें सूर्य को अर्घ्य*

1. उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तांबे के लोटे में पानी भरें

2. लोटे में गंगाजल की कुछ बूंदे, अक्षत, लाल चंदन और लाल फूल डालें

3. सूर्य को प्रणाम करें और ऊँ सूर्याय नम: बोलते हुए अर्घ्य दें.

4. अर्घ्य वाला जल पैरों में न आए और तांबे के ही बर्तन में गिरे ऐसी व्यवस्था करें.

5. सूर्य को चढ़ाया हुआ जल मदार के पौधे या किसी गमले में डाल दें.

इस पर्व पर सूर्योदय से पहले नहाना और खासतौर से गंगा स्नान का बहुत महत्व है. ग्रंथों का कहना है कि संक्रांति पर्व पर तीर्थ स्नान करने वाले को ब्रह्म लोक मिलता है.

देवी पुराण में कहा गया है कि संक्रांति के दिन जो नहीं नहाता वो बीमारियों से परेशान रहता है. संक्रांति के दिन दान और पुण्य कर्मों की परंपरा सदियों से चली आ रही है.

मेष संक्रांति को बहुत खास माना गया है. क्योंकि इस समय सूर्य की रोशनी ज्यादा समय तक धरती पर रहती है, इसलिए गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है. साथ ही चैत्र और वैशाख महीना भी होता है. पुराणों में इस महीने जलदान करने का महत्व बताया है. ऐसा करने से मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता.

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