भारत का पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है. हिंसक प्रदर्शनों के बीच बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को अचानक पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ा है. इसके बाद देश के सेना प्रमुख वकर-उज-जमान ने घोषणा की है कि सेना की मदद से नई अंतरिम सरकार बनाई जाएगी. अवामी लीग पार्टी ने हसीना के इस्तीफे की मांग को मुख्य विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और अब प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी पार्टी के प्रभाव के लिए जिम्मेदार ठहराया है, उन पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है.
बांग्लादेश में इस विरोध के पीछे आरक्षण के अलावा, बेरोजगारी, घटते विदेशी मुद्रा भंडार और हर चीज पर नियंत्रण की इच्छा भी है. प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि 1971 के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों के लिए 30 प्रतिशत सरकारी नौकरियों को आरक्षित करने वाले कोटा सिस्टम को खत्म किया जाए. पहले जब हिंसा भड़की थी तब कोर्ट ने कोटे की सीमा को घटा दिया था, लेकिन हिंसा नहीं थमी. अब प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए हैं और हिंसा कर रहे हैं. अब तक 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई है.
बांग्लादेश के बिगड़े हालात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि अब तक 14 पुलिसवालों की मौत हो चुकी है. 300 से ज्यादा पुलिसवाले घायल हैं. 11 हजार से ज्यादा लोग गिरफ्तार हैं. बांग्लादेश को 10 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हो चुका है और प्रदर्शनकारियों ने अवामी लीग अध्यक्ष शेख हसीना के कार्यालय को आग लगा दी है.
अभी जो खबर सामने आ रही हैं, उसके मुताबिक देश में अराजकता का माहौल है. बड़ी संख्या में भीड़ सड़कों पर उतरी हुई है और लूटपाट व आगजनी करने में लगी है. खबर ये भी आ रही हैं कि बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं के घरों में भी आग लगाई जा रही है. शेख हसीना की सरकार का भारत के प्रति झुकाव रहता था. मगर, जिस तरह से उनको देश छोड़कर भागना पड़ा है. इससे एक बात साफ है कि देश में कट्टरपंथी तत्वों का उदय हो रहा है. शेख हसीना की पार्टी ने इसे पीछे जमात-ए-इस्लामी को जिम्मेदार बताया है. जिस पर पाकिस्तान समर्थक होने का आरोप लगता रहा है.
चीन रच सकता है ये साजिश
- भारत के नजरिए से देखें तो पश्चिम बंगाल से बांग्लादेश का बॉर्डर लगता है. यहां पर समय-समय पर घुसपैठ की खबरें आती रहती हैं. ऐसे में अगर यहां पर कोई कट्टर या अस्थिर सरकार बनती है तो आने वाला समय भारत के लिए काफी कठिन होगा. इससे पहले बांग्लादेश के बंटवारे के समय एक करोड़ की तादाद में बांग्लादेश से लोग पश्चिम बंगाल में आए थे, जिनको लेकर आज तक भारत में राजनीति होती है.
- शरणार्थियों के आने से भारत को सावधानीपूर्वक निपटना होगा. इसके अलावा, चीन की भी इस पूरे घटनाक्रम पर नजर होगी, क्योंकि वह भी बांग्लादेश संकट का फायदा उठाकर यहां पर पाकिस्तान को अधिक सक्रिय करना चाहेगा, जिससे भारत को अस्थिर करने में मदद मिल सके.
पाकिस्तान के झंडे वाली तस्वीरें
- शेख मुजीबुर्रहमान ने भारत की मदद से बांग्लादेश की स्थापना की थी. साल 1971 में पाकिस्तान के जुल्मों का मुकाबला किया था. आज बांग्लादेश में प्रदर्शन के दौरान जिस तरह से पाकिस्तान के झंडे वाली तस्वीरें सामने आईं, वो भारत के लिए परेशान करने वाली हैं. बांग्लादेश की अवाम शुरू से दो धड़ों में बंटी रही है, जिसमें एक धड़ा कट्टरपंथियों का है, जोकि पाकिस्तानी सेना का जुर्म सहने के बावजूद आज भी उनके करीब है.
- दूसरा धड़ा शेख हसीना वाला है, जिनके खिलाफ आक्रोश की सारी सीमाएं आज पार हो चुकी हैं. बांग्लादेश का इतिहास रहा है कि जब भी अवामी लीग कमजोर पड़ती है या जनता पर उसकी पकड़ ढीली पड़ती है, तब-तब बीएनपी और कट्टरपंथी ताकतें मजबूत हो जाती हैं. हालांकि इस वक्त बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के बाद सेना ने मोर्चा संभाल लिया है.
अधर में लटक जाएगी ये परियोजना
इसके साथ ही भारत ने हाल ही में बांग्लादेश के साथ मोंगला बंदरगाह को लेकर समझौता किया था, जिसको चीन के लिए एक अहम चुनौती माना जा रहा था. इसके माध्यम से भारत-बांग्लादेश हिंद महासागर के पश्चिमी और पूर्वी किनारों पर मजबूत पकड़ बनाने में कामयाब हुआ था, लेकिन जिस तरह से वहां पर शेख हसीना की सरकार का तख्तापलट हुआ है, उससे आने वाले समय में यह परियोजना थोड़ी अधर में लटक जाएगी. बांग्लादेश में बनने वाली नई सरकार में अगर कट्टरपंथियों का उदय होता है तो वो हसीना द्वारा भारत के साथ हस्ताक्षरित समझौतों को रद्द कर सकता है.
पश्चिम बंगाल के साथ-साथ असम, मिजोरम, मेघालय और त्रिपुरा की सीमा भी बांग्लादेश से लगती है. शेख हसीना के साथ मिलकर भारत इन पूर्वोत्तर राज्यों में शांति स्थापित करने में लगा हुआ था, क्योंकि कुछ विद्रोही गुट ऐसे थे जो वारदात के बाद बांग्लादेश भाग जाते थे. मगर, हसीना की सरकार आने के बाद ऐसा करना उनके लिए काफी मुश्किल भरा रहा है. इसी दबाव में ज्यादातर ने भारत के साथ शांति संधि की. हालांकि म्यांमार में तख्तापलट के बाद अभी भी कुछ गुट उधर चले जाते हैं. वहां पर उनकी मदद चीन करता है. ऐसे में भारत के लिए सीमा पर आने वाला समय थोड़ा मुश्किल भरा रहेगा.