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Bhagwan Bhairav Mandir: मध्य प्रदेश के इस मंदिर में जंजीरों से बंधे हैं भगवान, प्रसाद में चढ़ती है मदिरा

Bhagwan Bhairav Mandir Madhya Pradesh: हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से भगवान की आराधना में लीन रहता है, वह सभी मोह के बंधन से मुक्त होकर बैकुंठ को जाता है. लेकिन भारत के इस मंदिर की इस अजीबोगरीब परंपरा को देख कर समझना मुश्किल हो जाता है कि आखिर यहां के लोग भगवान को ही जंजीर में बांध कर क्यों रखते हैं.

कहां स्थित हैं यह मंदिर?

मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले में स्थित केवड़ा स्वामी मंदिर भगवान भैरव को समर्पित है. यहां भगवान भैरव की आराधना 600 सालों से केवड़ा स्वामी के रूप में हो रही है. माना जाता है कि काल भैरव अपने भक्तों पर सदैव कृपा बनाए रखते हैं और इनकी पूजा करने से घर से नकारात्मक शक्तियां भी दूर हो जाती हैं.साथ ही काल भैरव की पूजा से शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त होती है. काल भैरव को भगवान शिव का ही रूप माना जाता है. काल भैरव अष्टमी को कालाष्टमी भी कहते हैं.

शास्त्रीय मान्यता है कि इसी दिन भगवान भैरव का प्राकट्य हुआ था. इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां भगवान भैरव की मूर्ति को जंजीरों से बांधकर रखा गया है. इस मंदिर में बाबा भैरव अपने बटुक भैरव रूप में विराजमान है. बाबा भैरव की यह मूर्ति सिंदूरी स्वरूप में सोने चांदी की मुकुद धारण किए हुए रुद्र अवतार में दिखते हैं. बाबा भैरव का यह मंदिर पूरी दुनियां में प्रसिद्ध हैं. इस मंदिर में सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग माथा टेकने और बाबा भैरव का आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं.

जंजीरों में बाधने का रहस्य

इस मंदिर में भैरव बाबा की प्रतिमा को जंजीरों से बांध कर रखने से जुड़ी मान्याता है कि बाबा भैरव बालक का रूप धारण कर नगर में जाते थें और वहां के बच्चों के साथ खेलने लगते थें. और जब उनका मन खेलने से भर जाता या वह किसी बात से नाराज हो जाते थे तो वे बच्चो को उठा कर तालाब में फेंक देते थें. उन्हें रोकने के लिए उनके आगे एक खम्बा लगा दिया है.

मदिरा का चढ़ता है भोग

हर साल भैरव पूर्णिमा व अष्टमी के दिन इस मंदिर में भारी संख्या में लोग यहां दर्शन करने आते हैं, यह दर्शनार्थी मंदिर के परिसर में ही दाल बाटी बनाते हैं. भगवान को भोग लगाते हैं. इसके अलावा यहां आने वाले भक्त भैरव बाबा को मदिरा का भी भोग लगाते हैं.

मंदिर का इतिहास

बाबा भैरव के मंदिर के इतिहास के बारे में यह मान्यता है कि वर्ष 1424 में केवड़ा स्वामी मंदिर के निर्माण से पहले झाला राजपूत परिवार के कुछ लोग गुजरात से अपने भैरव को लेकर जा रहे थे. जब वे रत्नसागर तालाब से गुजरे तो उनका चक्का थम गया और नतीजा यह हुआ कि भैरव महाराज यहीं बस गए. ऐसा माना जाता है कि झाला वंश के राजा राघव देव ने इस मूर्ति की स्थापना की थी, यह झाला राजपूत समाज की कुल देव भी हैं.

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