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INDIA गठबंधन की सरकार बनते ही संविधान में संशोधन कर मुस्लिमों को देंगे आरक्षण:सपा सांसद एसटी हसन

नई दिल्लीः लोकसभा चुनाव के बीच इन दिनों आरक्षण के मुद्दे पर भी जमकर बयानबाजी हो रही है. मुस्लिम आरक्षण के बयान को लेकर कांग्रेस और आरजेडी के बाद अब सपा की तरफ से भी बयान सामने आया है. मुरादाबाद से सपा सांसद एसटी हसन ने कहा है कि मुसलमानों को भी आरक्षण मिलना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘क्यों नहीं मिले मुसलमान को आरक्षण .. मुसलमान को आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत है.. मुझे उम्मीद है इंडिया गठबंधन की सरकार बनते ही संविधान में संशोधन कर मुसलमान को दिए आरक्षण दिया जाएगा.. क्या मुसलमान इस देश का नागरिक नहीं है ? अगर हिंदुओं में धोबी जाति को आरक्षण मिल सकता है तो मुसलमान में धोबी जाति को आरक्षण क्यों नहीं ?’

आपको बता दें कि चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ ही देश में मुस्लिम आरक्षण पर बहस भी तेज हो गई है. एक तरफ जहां बीजेपी विपक्षी गठबंधन पर मुस्लिमों को आरक्षण देने का आरोप लगा रही है तो वहीं विपक्षी दल भी इस मामले पर खुलकर सामने आ गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता अपनी रैलियों में कांग्रेस पर धर्म के आधार पर आरक्षण देने का आरोप लगा रहे हैं.

कुछ समय पहले पूर्व सीएम और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने मुसलमानों को आरक्षण देने की खुलकर वकालत करते हुए कहा था कि बीजेपी वाले डर गए हैं, लोगों को सिर्फ भड़का रहे हैं, वो संविधान खत्म करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि मुसलमानों को पूरा आरक्षण तो मिलना चाहिए. हालांकि बाद में उन्होंने इस पर सफाई भी दी थी.

मुस्लिमों को कैसे मिलता है ये आरक्षण?

भारतीय संविधान समानता की बात करता है. इसमें धर्म के आधार पर आरक्षण का प्रावधान नहीं है. संविधान कहता है कि अगर कोई वर्ग पिछड़ा है तो उसे मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण दिया जा सकता है.1992 में इंदिरा साहनी बनाम केंद्र सरकार मामले में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि अगर कोई सामाजिक समूह पिछड़ा है तो उसे पिछड़ा वर्ग माना जाएगा, फिर चाहे उसकी धार्मिक पहचान कुछ भी हो.अभी मुसलमानों को जो आरक्षण दिया जाता है, वो कोटे के अंदर कोटा सिस्टम के जरिए मिलता है.

मुसलमानों की जो जातियां एससी, एसटी या फिर ओबीसी में शामिल हैं, उन्हें इस कैटेगरी के अंदर ही आरक्षण मिलता है. मुस्लिमों की जातियों के लिए अलग से कोई कोटा नहीं है.मसलन, केरल में मुस्लिमों को हायर एजुकेशन में 8% आरक्षण मिलता है, उन्हें ये ओबीसी के ही 30% कोटे से दिया जाता है.

किस आधार पर हुआ मुस्लिम आरक्षण का विरोध?

केंद्र सरकार ने 1950 के आदेश को चुनौती देने दिए जाने का भी विरोध किया था. केंद्र ने कहा था कि ये आदेश ‘असंवैधानिक’ नहीं है और इससे ईसाई और इस्लाम धर्म को इसलिए बाहर रखा गया था क्योंकि इन दोनों धर्मों में ‘छुआछूत’ नहीं है.इसके अलावा 2007 में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग ने दलित मुस्लिमों और दलित ईसाइयों को एससी का दर्जा देने की सिफारिश की थी. सरकार ने इन सिफारिशों को ‘खामी’ भरा बताते हुए नामंजूर कर दिया था.

पिछले साल अप्रैल में केंद्र सरकार ने दलित मुस्लिमों और दलित ईसाइयों को एससी का दर्जा देने की मांग वाली याचिकाओं पर फैसला लेने से पहले पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन की अगुवाई वाली कमेटी की रिपोर्ट आने तक का इंतजार करने का अनुरोध किया था.

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