विश्व आदिवासी दिवस, 9 अगस्त को मनाया जाता है, जो आदिवासियों की अनूठी संस्कृति, परंपराओं और उनके संघर्ष को सम्मानित करने का अवसर है। यह दिवस हमें उन अद्वितीय योगदानों को याद दिलाता है जो आदिवासी समुदायों ने मानवता की विकास यात्रा में किए हैं।
आदिवासी समुदायों की संस्कृति अत्यंत समृद्ध और विविध है। उनकी भाषा, संगीत, नृत्य, कला और हस्तशिल्प न केवल उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, बल्कि वे उनके इतिहास और धरोहर को भी जीवंत बनाए रखते हैं। उनकी धार्मिक आस्थाएं एवं परंपराएं पर्यावरण संरक्षण के प्रति गहरी आस्था को दर्शाती हैं। इनके लोकगीत और नृत्य, जैसे कि बस्तर का घोटुल नृत्य, झारखंड का झूमर नृत्य, सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत हिस्सा हैं।आदिवासी समुदायों का संघर्ष हजारों साल पुराना है। यह संघर्ष उनके अस्तित्व, अधिकार और पहचान की रक्षा के लिए है। आदिवासियों को उनके निवास स्थान से बेदखल करना, उनकी जमीनें छीनना और उनके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना जैसी समस्याएं आदिवासियों ने झेली हैं।
भारत में अंग्रेजों के शासनकाल में, आदिवासी समुदायों ने अपने हक के लिए कई संघर्ष किए। बिरसा मुंडा, सिधू-कान्हू, तिलका मांझी जैसे वीर योद्धाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ अपने लोगों को संगठित किया और उनके अधिकारों के लिए लड़े।भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समुदायों का योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया बल्कि भारतीय समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य भी किया। आदिवासी नेताओं ने स्थानीय स्तर पर संगठनों का निर्माण किया और विदेशी शासकों के विरुद्ध जनजागरण किया।धरतीआबा भगवान बिरसा मुंडा का योगदान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजी शासन के खिलाफ मुंडा विद्रोह का नेतृत्व किया। उनका संघर्ष और बलिदान न सिर्फ आदिवासी बल्कि हम सभी के लिए प्रेरणादायक है।