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10 साल की उम्र में गंवाए हाथ, पैरों से चलानी सीखी कार, 20 साल बाद ऐसे मिला ड्राइविंग लाइसेंस

कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों… इस कहावत को सच कर दिखाया है तमिलनाडु के तानसेन ने. महज 10 साल की उम्र में तानसेन ने एक बिजली दुर्घटना में अपने दोनों हाथ गंवा दिए. लेकिन जज्बा और जुनून फिर भी उनका कम न हुआ. उन्हें कार चलाने का शौक था. इस शौक को उन्होंने पूरा कर दिखाया और वह तमिलनाडु के पहले ऐसे दिव्यांग बने हैं, जिन्हें ड्राइविंग लाइसेंस मिला है.

30 साल के तानसेन की कहानी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं है. पेरम्हूर के रहने वाले तानसेन जब 10 साल के थे तो बिजली दुर्घटना में उन्होंने अपने दोनों हाथ गंवा दिए. तानसेन को कार चलाने का शौक था. लेकिन दोनों हाथ गंवाने के बाद उन्होंने मान लिया था कि वो शायद कभी भी ड्राइविंग नहीं कर पाएंगे. एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में तानसेन ने बताया कि ड्राइविंग लाइसेंस पाने की इच्छा उनके अंदर तब जगी, जब उन्होंने मध्य प्रदेश के एक व्यक्ति विक्रम अग्निहोत्री के बारे में सुना.

दरअसल, अग्निहोत्री के भी दोनों हाथ नहीं थे. बावजूद इसके सालों पहले उन्होंने ड्राइविंग लाइसेंस हासिल कर लिया था. वहीं, केरल की एक महिला जिलुमोल मैरिएट थॉमस भी लाइसेंस पा चुकी हैं. इन सब उदाहरणों से तानसेन को भी प्रेरणा मिला.

10 साल की उम्र में गंवाए दोनों हाथ

तानसेन ने कहा, ‘जब मैं 10 साल का था तो मेरे साथ एक हादसा हुआ. इससे मैंने दोनों हाथ खो दिए. फिर जब मैं 18 साल का हुआ तो मेरे सभी दोस्तों को ड्राइविंग लाइसेंस मिल गए. उस समय मुझे बहुत बुरा लगा. क्योंकि मैं लाइसेंस नहीं ले सका या कार नहीं चला सका. तब मैंने सोचा कि लाइसेंस पाना मेरे लिए महत्वपूर्ण है. मैंने मध्य प्रदेश के अग्निहोत्री के बारे में खबर सुनी, उनसे भारत में बिना हाथों के लाइसेंस पाने के लिए मुझे प्रेरणा मिली. हाल ही में केरल में एक लड़की को भी लाइसेंस मिला.’

3 महीनों की टफ ट्रेनिंग

गाड़ी चलाने का सपना लिए तानसेन ने बिना हाथों के अपने पैरों का उपयोग करके कार चलाना सीखना शुरू कर दिया. उन्होंने एक नई मारुति स्विफ्ट कार खरीदी. उसमें थोड़ा बदलाव किया और तीन महीने तक लगातार ट्रेनिंग की. उन्होंने बताया, ‘मैंने एक कार खरीदी और चलाने की कोशिश की. मेरा दाहिना पैर स्टीयरिंग व्हील पर था और मेरा बायां पैर ब्रेक और एक्सीलेटर पर था. मैंने तीन महीने तक कार चलाने की ट्रेनिंग ली, जिसके बाद मैं आरटीओ गया. आरटीओ ने मुझे लाइसेंस दे दिया. मैं लाइसेंस पाकर बहुत खुश हूं. तमिलनाडु में मैं लाइसेंस पाने वाला ऐसा पहला व्यक्ति हूं. मुझे लगता है कि इसके बाद मेरे जैसे लोगों को बहुत आसानी से लाइसेंस मिल जाएगा. लेकिन इसके लिए उन्हें भी पूरी लगन से गाड़ी चलाने पर फोकस करना होगा. सिर्फ कहने मात्र से ही लाइसेंस नहीं मिलता. लगन का होना बहुत की जरूरी होता है.’

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