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रायपुर का साइको किलर जो इंसान को जिंदा ही जमीन में दफना देता था

साइको किलर अरुण चंद्राकर के अपराध की गंभीरता उसके अपराध करने के तरीके से पता चलती है. अरुण चंद्राकर को जिससे भी नफरत हो जाती थी उसे पहले वह बेहोश करता और फिर एक गड्ढा खोदकर गड्ढे में जिंदा ही उन्हें दफन कर देता था. साल 2012 में रायपुर पुलिस एक बच्ची की हत्या की जांच करती हुई इस साइको किलर तक पहुंची थी. पुलिस ने जब अरुण चंद्राकर से सख्ती से पूछताछ की तो उसने न केवल उस बच्ची की हत्या का राज खोल दिया जिसकी पुलिस को तलाश थी, बल्कि इसी तरह से की गई सात अन्य लोगों की हत्या का राज भी पुलिस को बता दिया.

इसके बाद पुलिस रिकॉर्ड में अरुण चंद्राकर बन गया छत्तीसगढ़ का सबसे खूंखार साइको किलर. पुलिस पूछताछ में साइको किलर अरुण चंद्राकर ने बताया कि उसने हत्या करने की प्रेरणा निठारी हत्याकांड से ली थी.

अपराध के बारे में एक प्रचलित कहावत है कि ‘हर अपराध के पीछे जर, जोरु, जमीन’ होती है, जर से मतलब रुपए, पैसे, धन. जोरू से मतलब स्त्री, जमीन से मतलब जमीन से चाहे वो रिहायशी हो या खेती-किसानी की. लेकिन इस साइको किलर के मामले में ऐसा नहीं था. जिस किसी पर भी साइको किलर अरुण चंद्राकर को शक होता वो उसकी हत्या कर देता था. उसके अपराध करने का मुख्य कारण अपनों से नफरत थी. इस नफरत के पीछे को कोई कारण नहीं बल्कि उसका शक्की मिजाज का होना था.

साइको किलर अरुण चंद्राकर रायपुर के कुकुरबेड़ा इलाके में रहता था. अरुण चंद्राकर को बचपन से ही चोरी करने की आदत पड़ गई थी. इसी के चलते उसे कई बार सजा हुई और उसकी इन्हीं आदतों से तंग आकर उसके पिता शत्रुघ्न ने उसे अपने घर से निकाल दिया था. इस घटना के बाद अरुण चंद्राकर दुर्ग के रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर रहने लगा था. पिता के द्वारा उसे घर से निकाले जाने के बाद से उसे अपने पिता से ही नफरत होने लगी थी जो धीरे-धीरे बढ़ने लगी.

जब उसका ये पागलपन हद पार होने लगा तब उसने अपने ही पिता की हत्या करने की ठान ली. अरुण चंद्राकर हर दिन अपने पिता की हत्या करने के लिए नए-नए तरीके खोजता रहता, साथ ही उसके अंदर पकड़े जाने का डर भी था, इसलिए वो पिता की हत्या की योजना बड़ी सावधानी से बनाने लगा. आखिर एक दिन अरुण चंद्राकर के हाथ मौका लग ही गया. वह अपने पिता को बहाने से दूसरे शहर ले जाने के लिए एक ट्रेन में सवार हो गया.

अपने योजना के मुताबिक अरुण चंद्राकर अपने पिता के साथ ट्रेन के गेट पर ही खड़ा हो गया था. जैसे ही ट्रेन ने तेज रफ्तार पकड़ी अरुण चंद्राकर ने अपने पिता को चलती ट्रेन से धक्का दे दिया. चलती ट्रेन से गिरने पर उसके पिता की वहीं मौत हो गई. ये अरुण चंद्राकर के आपराधिक जीवन की पहली हत्या थी.

अपने पिता की हत्या करने और इस घटना को हादसा साबित करने के बाद साइको किलर अरुण चंद्राकर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के हीरापुर नाम की बस्ती में अपनी जान पहचान वाले बहादुर सिंह नाम के व्यक्ति के घर किराए पर रहने लगा. एक दिन बहादुर सिंह के साथ अरुण चंद्राकर की मामूली कहासुनी हो गई. इस कहासुनी को बहुदार सिंह ने आम कहासुनी समझकर भुला दिया था, लेकिन अरुण चंद्राकर ने इस घटना की गांठ अपने मन में बांध ली और उसने एक दिन मौका मिलते ही बहादुर सिंह की हत्या कर उसे जमीन में गाड़ दिया.

इस घटना के बाद अरुण चंद्राकर भाग कर अपने मंगलू देवार के कुकुरबेड़ा स्थित घर में रहने लगा. इसी दौरान उसे पास में ही रहने वाली युवती लिली देवार से प्यार हो गया. अरुण चंद्राकर ने लिली देवार से शादी कर ली. शादी के बाद अरुण चंद्राकर लिली के मामा ससुर संजय देवार के ही घर में घर जमाई बन कर रहने लगा था.

इस दौरान उसकी नजरें मामा ससुर की संपत्ति पर गड़ गईं. एक दिन उसने अपने मामा ससुर की संपत्ति पर कब्जा करने की नीयत से मौका देखकर संजय देवार की हत्या कर दी और उसे उसके ही घर में गड्ढा खोद कर वहीं दफन कर दिया. अपने मामा की हत्या की बात लिली को पता चलने पर और मामला खुलने के डर से अजय चंद्राकार ने लिली की भी हत्या कर ही और उसे भी वहीं दफना दिया.

इसके बाद अपनी पत्नी की हत्या के राज को छुपाने के लिए उसने अपनी साली पुष्पा, साले और उसकी पत्नी की भी हत्या कर वहीं दफन कर दिया. पुलिस की पूछताछ में अजय चंद्राकर ने कबूल किया था कि उसे हत्या करने का आइडिया निठारी हत्याकांड से मिला था.

साइको किलर अरुण चंद्राकर ने पुलिस पूछताछ में बताया कि पहले वो खाने में बेहोशी की दवा देकर शख्स को बेहोश कर देता था और फिर उनको उनके ही घर में गड्ढा खोदकर उसमें जिंदा गाड़ देता था. अरुण चंद्राकर को लगता था कि जब किसी के हाथ कोई शव नहीं लगेगा तो उस पर कोई शक भी नहीं करेगा और वो आसानी पुलिस के पकड़ से दूर बना रहेगा.

रायपुर की जिला कोर्ट ने 7 लोगों की हत्या करने के मामले में उसे उम्र कैद की सजा सुनाई, लेकिन अरुण चंद्राकर इतने अपराध के बाद इतना खूंखार हो चुका था उसे न तो पुलिस का कोई खौफ था और न ही किसी कानून का डर. वो हर अपराध से पहले बेहतरीन योजना बनाता था. एक बार उसने जेल से भागने की योजना बनाई. दुर्ग में हुई एक हत्या के मामले की सुनवाई के दौरान वह पुलिस पार्टी के आंखों के सामने से फरार हो गया.

दुर्ग कोर्ट की पेशी से फरार होने के बाद अरुण चंद्राकर लगभग 9 महीनों तक महाराष्ट्र में अलग-अलग शहरों में भिखारी बनकर रहा और मंदिरों के आसपास भीख मांग कर अपना गुजारा करने लगा. भीख मांगने से जो पैसा मिलता था उसमें से कुछ पैसा वो अपनी इकलौती बेटी के लिए जमा करने लगा. 3 फरवरी 2018 के दिन उसकी बेटी का जन्मदिन था. अरुण चंद्राकर बाबा के भेष में अपनी बेटी का जन्म दिन मनाने के लिए रिक्शे में बर्थ डे का सामान लेकर आ रहा था.

पकड़े जाने के डर से वो मोहल्ले में तो नहीं आया लेकिन रिक्शे वाले के हाथ से अपनी बेटी के लिए सामान पहुंचा दिया. अरुण चंद्राकर के द्वारा अपनी बेटी के लिए सामान पहुंचाने पर उसकी सास को अपने नवासी की चिंता होने लगी कि कहीं अरुण चंद्राकर उसे भी न मार डाले. उसकी सास अनसुइया ने तुरंत पुलिस के पास सूचना भिजवा दी. पुलिस तुरंत एक्शन में आई और अरुण चंद्राकर की घेराबंदी कर झुरमुट इलाके से उसे गिरफ्तार कर लिया.

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