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योग या योगा… क्या है इसका सही नाम, कहां से शुरू हुआ यह कंफ्यूजन?

21 जून को दुनिया भर में योग दिवस मनाया जाएगा. इसके लिए तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं पर योग को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तरह से लिखा-पढ़ा जाता है. कहीं इसे योग लिखते हैं तो कहीं योगा. अब ये योगा कहां से आ गया? वेदों में योग के बारे में क्या कहा गया है और क्या कहता है इतिहास? आइए जानने की कोशिश करते हैं.

डॉ. ईश्वर वी बासावरड्डी का एक लेख है, ‘योग : इसकी उत्पित्ति, इतिहास एवं विकास’. इसमें इस सवाल का जवाब दिया गया है, इसके साथ ही योग से जुड़ी कई दिलचस्प जानकारियां दी गई हैं.

योग या योगा, क्या है सही शब्द?

डॉ. ईश्वर के लेख में योग के बारे में कहा गया है कि यह बहुत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित एक आध्यात्मिक विषय है. मन एवं शरीर के बीच योग सामंजस्य स्थापित करने पर ध्यान देता है. इसीलिए इसे योग कहा जाता है. यह संस्कृत की युज धातु से बना है, जिसका अर्थ है जुड़ना या एकजुट होना. योगा की बात करें तो यह योग का ही विकृति यानी बिगड़ा हुआ रूप है. योग जब पश्चिमी देशों में पहुंचा तो इसे अंग्रेजी में Yoga लिखा जाने लगा. फिर इसका उच्चारण भी योगा हो गया. इसके अलावा योग और योगा में कोई फर्क नहीं है और सही नाम योग ही है.

सभ्यता की शुरुआत के साथ ही योग का विकास

योग की उत्पत्ति की बात करें, तो ऐसी मान्यता है कि सभ्यता की शुरुआत के समय से ही योग किया जाता रहा है. यहां तक कि योग के विज्ञान का विकास धर्मों और आस्था के जन्म लेने से भी काफी पहले हुआ था. भगवान शिव को योग विद्या में पहला योगी या आदि योगी माना जाता है. सिंधु-सरस्वती घाटी सभ्यता के कई जीवाश्म अवशेषों और मुहरों पर योग चित्रित मिलता है.

सिंधु घाटी सभ्यता, वैदिक एवं उपनिषद की विरासत,बौद्ध एवं जैन परंपराओं, दर्शनों, महाभारत और रामायण आदि महाकाव्यों, शैव-वैष्णव की आस्तिक परंपराएं हों या फिर तांत्रिक परंपराएं, सबमें योग मौजूद. व्यवस्थित ढंग से देखें तो योग के बारे में जानकारी के मुख्य स्रोत हैं चार वेद, 18 उपनिषद, स्मृतियां, बौद्ध और जैन धर्म, पाणिनी, रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों के उपदेश और 18 पुराण.

महर्षि पतंजलि को माना जाता है योग का जनक

भागवद्गीता में ज्ञान योग, भक्ति योग और कर्म योग के बारे में विस्तार से बताया गया है और तीन तरह के ये योग आज भी मानव की बुद्धिमत्ता के सबसे बड़े उदाहरण हैं. पूर्व वैदिक काल में महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों के जरिए उस समय विद्यमान योग की प्रथाओं और इससे संबंधित ज्ञान को व्यवस्थित किया है. करीब पांच हजार साल पहले महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र की रचना की थी. भारत में उन्हें प्राचीन योग का जनक माना जाता है. साथ ही योग सूत्र को योग दर्शन का मूल ग्रंथ माना जाता है.

नाथ परंपरा में हठ योग को बढ़ावा मिला

पतंजलि के योग सूत्र में योग के आठ मार्ग मिलते हैं. 800 ईस्वी से 1700 ईस्वी के बीच आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और माधवाचार्य के उपदेशों में इसका वर्णन मिलता है. सुदर्शन, तुलसी दास, पुरंदर दास, मीराबाई के उपदेशों में भी योग विद्यमान है. नाथ परंपरा के मत्स्येंद्र नाथ, गोरख नाथ, गौरांगी नाथ, स्वात्माराम सूरी, घेरांडा, श्रीनिवास भट्ट ने हठ योग की परंपरा को लोकप्रिय बनाया.

तिरुमलाई कृष्णामाचार्य को कहा जाता है आधुनिक योग का जनक

आधुनिक काल में यानी 1700 से 1900 ईस्वी के बीच महर्षि रमन, रामकृष्ण परमहंस, परमहंस योगानंद, विवेकानंद आदि के जरिए राज योग का विकास हुआ. इसी दौरान वेदांत, भक्ति योग, नाथ योग (हठ योग) आदि खूब विकसित हुए. आज के समय में बात करें तो स्वामी विवेकानंद से शुरुआत कर सकते हैं. स्वामी कुवालयनंदा, श्री योगेंद्र, स्वामी राम, श्री अरविंदो, महर्षि महेश योगी, आचार्य रजनीश, पट्टाभिजोइस, बीकेएस आयंगर, स्वामी सत्येंद्र सरस्वती के जरिए योग पूरी दुनिया में फैल चुका है. आधुनिक योग के पिता के रूप में हम सब तिरुमलाई कृष्णामाचार्य का नाम जानते ही हैं. योग गुरु, वैद्य और विद्वान तिरुमलाई कृष्णामाचार्य आजीवन योग को घर-घर पहुंचाने में लगे रहे.

चारों वेदों में विद्यमान है योग

वेदों की बात करें तो ऋग्वेद में कहा गया है कि योग साधना से जो मनुष्य सिद्धियां प्राप्त करना चाहते हैं, वे शरीर की नाड़ियों के मूलबन्ध और जालन्धर की सहायता से कुम्भक आदि लगाकर प्राणों को नियंत्रित करते हैं. सामवेद में रथेभिः शब्द मिलता है. इसका मतलब है योग साधना और ईश्वर की प्राप्ति के लिए शरीर में जीवात्मा का होना जरूरी है. यजुर्वेद के श्लोक एक से पांच तक में योग साधना का उल्लेख है. अथर्ववेद में योग सम्मत शरीर विज्ञान के बारे में बताया गया है. इसमें शरीर में आठ चक्र और नवद्वार बताए गए हैं.

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